दिन
बीते राते बीती
साल कई बीत गए
साल कई बीत गए
उठी
सुबह की लाली
नया संदेसा लिए हुए
नया संदेसा लिए हुए
जीवन
की राह पर
हर मोड़ -चोराहे पर
हर मोड़ -चोराहे पर
देखे
कितने सुन्दर सपने
सुन्दर सपने सजग रहे
सुन्दर सपने सजग रहे
हुआ
अनुभव
इस
उच्छ्वसित अवधि मैं
उच्छ्वसित अवधि मैं
जीवन
क्या है
कैसा है
कैसा है
सुन्दर
है सुन्दरतम है
पर
दुःख भी मिश्रित है
दुःख-सुख
के मिश्रण
का यौगिक
का यौगिक
जीवन
भी क्रीडा स्थल है |
कभी
हार होती है दुःख की
कभी
जीत जाती है खुशिया
@ १९६५ हरिवंश शर्मा