Thursday 24 July 2014

जीवन क्रम


 

दिन बीते  राते  बीती  
साल  कई  बीत  गए

उठी सुबह की लाली
नया संदेसा लिए हुए

जीवन  की  राह  पर
हर  मोड़ -चोराहे पर
देखे कितने सुन्दर सपने
सुन्दर  सपने  सजग रहे

हुआ   अनुभव   इस
उच्छ्वसित अवधि मैं

जीवन क्या है  
कैसा   है
सुन्दर है  सुन्दरतम है
पर दुःख भी मिश्रित है

दुःख-सुख के मिश्रण
का             यौगिक
जीवन भी क्रीडा स्थल है |
कभी हार होती है दुःख की 
कभी जीत जाती है खुशिया

 

 

 @ १९६५ हरिवंश शर्मा

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर कविता है .... जीवन ऐसा ही है

    ReplyDelete

आपके विचार और सुझाव हमारे लिए प्रेरणास्रोत हैं.