Thursday 10 July 2014

प्रेम धारा

तेरी चाहत में

मेरा प्यार है

तेरी चाहत में


प्यार शर्माता है

घबराता है !

ह्रदय  से फूटती है

प्रेम की धारा

विचारों  में

प्रवाहित होकर

नहला देती है

मन को

मस्तिष्क  को

रूह को

सारे बदन को

और मैं  पवित्र

हो जाता हूँ

 

तेरे प्यार में

समां जाता हूँ

उस धारा में

शांत हो जाता है

यह अधीर मन

पाता हूँ अपने समक्ष

भगवान को

मेरा प्यार मेरी पूजा है

धारा को बहने दो

उसे समा जाने दो

उस सरिता में

उसे बहने दो सागर

की ओर

समा जाने दो

उसे महासागर में

 

धारा बन गई राधा

मिल गई क्षीर सागर में

अपने प्रिय से

प्रिय से बन गई

प्रियतमा

विश्व भी समा गया उस में

कृष्ण भी समा गया उस मे

 

मेरा प्यार

शर्माता नहीं

घबराता नही

मुरझाता नहीं

ऐ मेरे प्रेम की धारा

तू बन जा राधा

ओर मुझे कृष्ण बना दे

मुझे अमरत्व नहीं

मुक्ति दिला दे




 
 

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